अपने सच को
कबूल करने के लिए बड़ी हिम्मत होनी चाहिए | शायद
वो सभी में नहीं होती लेकिन ऋषि कपूर ने अपने सच को न सिर्फ कबूल किया बल्कि उसके
ऊपर एक एक ऑटोबायोग्राफी भी लिखी है | बॉलीवुड में एक वक़्त
ऐसा था जब अंडरवर्ल्ड का पैसा फिल्मो में
लगता था | इसलिए तमाम फिल्मी हस्तिया अंडरवर्ल्ड से संपर्क
में थी| लेकिन किसी ने अपने रिश्तो को कबूला नहीं लेकिन वही 'खुल्लम खुल्ला में ऋषि ने अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहिम से उनकी मुलाकात
के बारे में कई रोचक खुलासे भी किए हैं।आगे पढ़ते है और क्या कबूल किया ऋषि कपूर ने
|

बॉलीवुड के पहले “रोमांटिक आइकॉन” अभिनेता ऋषि कपूर आज हमारे बीच अब नहीं हैं। लेकिन उनके किये गए तमाम किरदार अभी लोगो की दिलो में बसे हुए है बॉबी फिल्म से ऋषि कपूर की ये इमेज बनना शुरू हो गयी थी और फिर देखते ही देखते वो बॉलीवुड में “रोमांटिक आइकॉन” के रूप में स्थापित हो गए |
ऋषि “रोमांटिक आइकॉन” हीरो की छवि के जैसे असल में भी थे उनके अफेयर के चर्चे भी उस समय खूब हुआ करते थे | जिसे उन्होंने बाद में कबूला भी वैसे अपने सच इस बॉलीवुड में कोई उजागर नहीं करता लेकिन ऋषि कपूर ने अपने तमाम सच को मीना अय्यर के द्वारा लिखी अपनी ऑटोबायोग्राफी ‘खुल्लम खुल्ला: ऋषि कपूर अनसेंसर्ड’ में बड़ी बेबाकी से कबूल किया है| उनकी छवि और उनकी जिंदगी के कई ऐसे रोचक किस्से हैं, जो बॉलीवुड के गलियारों में खूब सुने जा सकते हैं| मैं आज आपको उनमे से कुछ खास बताने वाला हूँ |
ऋषि “रोमांटिक आइकॉन” हीरो की छवि के जैसे असल में भी थे उनके अफेयर के चर्चे भी उस समय खूब हुआ करते थे | जिसे उन्होंने बाद में कबूला भी वैसे अपने सच इस बॉलीवुड में कोई उजागर नहीं करता लेकिन ऋषि कपूर ने अपने तमाम सच को मीना अय्यर के द्वारा लिखी अपनी ऑटोबायोग्राफी ‘खुल्लम खुल्ला: ऋषि कपूर अनसेंसर्ड’ में बड़ी बेबाकी से कबूल किया है| उनकी छवि और उनकी जिंदगी के कई ऐसे रोचक किस्से हैं, जो बॉलीवुड के गलियारों में खूब सुने जा सकते हैं| मैं आज आपको उनमे से कुछ खास बताने वाला हूँ |
ज़िन्दगी
का पहला ही बेस्ट एक्टर फिल्म फेयर अवार्ड ख़रीदा
कोई सोच भी
नहीं सकता की ऋषि ऐसा कर कर सकते है लेकिन ये सच है की उन्होंने अपना पहला बेस्ट एक्टर अवार्ड 30 हजार में ख़रीदा था | ये बात साल 1973 की है
जब बॉबी फिल्म के साथ अमिताभ की 'जंजीर
फिल्म रिलीज़ हुई थी जिसमे अमिताभ की एक्टिंग में उन्हें रातो रात स्टार बना दिया|
इस फिल्म में अमिताभ की बहुत तारीफ भी हुई लेकिन उन्हें बेस्ट एक्टर अवार्ड नहीं
मिला |
इसके पीछे की
कहानी खुद ऋषि कपूर ने 'खुल्लम खुल्ला' में लिखा है, “मुझे
ये कहते हुए शर्म आती है कि मैंने वह अवॉर्ड खरीदा था”। दरअसल उस वक्त में
भोला-भाला सा था। तारकनाथ गांधी नामक एक पीआरओ ने मुझसे कहा, सर 30 हजार दे दो, तो मैं आपको
अवॉर्ड दिलवा दूंगा। मैंने बिना कुछ सोचे उन्हें पैसे दे दिए। मेरे सेक्रेटरी
घनश्याम ने भी कहा था, सर, पैसे दे
देते हैं। मिल जाएगा अवॉर्ड।
ऋषि को "ऐसा लगता है कि 'बॉबी' के लिए
मुझे बेस्ट एक्टर का अवॉर्ड मिलने से अमिताभ निराश हो गए थे। उन्हें लगा था कि ये
अवॉर्ड 'जंजीर' के लिए जरूर मिलेगा।
अमिताभ को बाद
में किसी से पता चला कि मैंने अवॉर्ड के लिए पैसे दिए थे। मैं बस इतना कहना चाहता
हूं कि 1974 में मैं महज 22 साल का
था। पैसा कहां खर्च करना है, कहां नहीं, इसकी बहुत समझ नहीं थी। बाद में मुझे अपनी गलती का अहसास हुआ।
फिल्म कभी-कभी
के दौरान दोनों के रिलेशन में गर्मजोशी न होने की एक वजह ये भी थी की फिल्म कभी-कभी की कहानी में अमिताभ फिल्म
सीरियस रोल में थे। जबकि मेरा रोल थोड़ा उलट था। फिल्म में मैं खिलंदड़ा किस्म का हूं। इसलिए अमिताभ
रोल में गंभीरता बनाए रखने के लिए सेट पर अलग-थलग रहते थे। लेकिन शायद सच तो ये है
कि मैंने अवॉर्ड खरीदा था, सबने ये जान लिया
था।"
यही वजह रही की ऋषि कपूर और अमिताभ बच्चन रिश्तो में अनकही दुरिया थी
ऋषि ने अपनी ‘खुल्लम खुल्ला” ऑटोबायोग्राफी में
लिखा है, ‘‘अमिताभ बच्चन एक महान एक्टर हैं। उन्होंने 1970
में फिल्मों का ट्रेन्ड ही बदल दिया। एक्शन की शुरुआत ही उन्हीं से होती है ,वो
एंग्री यंग मैन की भूमिका में पसंद भी किये जाने लगे थे | उस वक्त उन्होंने कई
एक्टर्स को बेकार कर दिया था ।
उस वक़्त मैं
महज 21 साल का था इसलिए मैं फिल्मों में कॉलेज गोइंग लडको का हीरो हुआ करता था।
मेरी कामयाबी का सीक्रेट बस यही है कि मैं काम को लेकर काफी जूनूनी रहा। मेरे
ख्याल से पैशन ही आपको सफलता दिलाता है।
पहले अवार्ड
मिलने के बाद से अमिताभ और मेरे बीच एक अनकहा तनाव चल रहा था। जिसे मैं महसुसू
करता था लेकिन हमने कभी उसे सुलझाने की कोशिश नहीं की और वक़्त के साथ वो खुद बखुद खत्म
भी हो गया।इसके बाद हमने
साथ में 'अमर अकबर एंथनी'
की और फिल्म के बाद तो गहरी दोस्ती हो गई।’’
हालांकि,
बाद में सब ठीक हो गया और हमारे रिश्ते बेहद अच्छे हो गए। अब तो
उनसे फैमिली रिलेशनशिप है। उनकी बेटी श्वेता की शादी मेरी बहन रितु नंदा के बेटे
निखिल से हुई है।’’
दाऊद इब्राहिम से मुलाकात को ऋषि कपूर ने कबूल किया |
जहाँ बॉलीवुड में उस दौर में तमाम एक्टर और एक्ट्रेस दाऊद इब्राहिम से मिला करते थे लेकिन किसी ने भी कभी अपने मिलने के सच को उजागर नहीं किया |ये दौर वो था तब कहा जाता है की अंडरवर्ल्ड का पैसा फिल्मो में लगता था | इसलिए तमाम फिल्मी हस्तिया अंडरवर्ल्ड से संपर्क में थी| लेकिन किसी ने अपने रिश्तो को कबूला नहीं लेकिन वही 'खुल्लम
खुल्ला में ऋषि ने अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहिम से उनकी मुलाकात के बारे में कई
रोचक खुलासे भी किए हैं।
वे लिखते हैं, "फेम ने मुझे कई
अच्छे लोगों से कॉन्टेक्ट कराया, तो वहीं कुछ संदिग्ध लोगों
से भी मिलवाया। उन लोगों में एक दाऊद इब्राहिम भी था।
बात साल 1988 की है। मैं अपने क्लोज फ्रेंड बिट्टू आनंद के साथ दुबई गया था जहां मुझे
आशा भोसले और आरडी बर्मन का नाइट प्रोग्राम अटेंड करना था। दाऊद का एक आदमी
एयरपोर्ट पर रहता था जो उसे वीआईपी लोगों की खबरें देता था। तभी एक अजनबी शख्स ने
मेरे पास आकर मुझे फोन दिया और कहा- दाऊद साहब बात करेंगे। ये सब बात 1993 के मुंबई ब्लास्ट से पहले की थी। मुझे नहीं लगता था कि दाऊद भागा हुआ था
और न ही वह उस स्टेट का दुश्मन था।
दाऊद ने मेरा स्वागत
किया और कहा - किसी भी चीज की जरूरत हो तो बस मुझे बता देना। उसने मुझे अपने घर भी
बुलाया। मैं भौंचक्का था।"
दाऊद ने ऋषि चाय पर
बुलाया था
ऋषि आगे लिखते
हैं "कुछ समय बाद मुझे एक लड़के से मिलवाया गया जो ब्रिटिश जैसा दिखता था। वह
बाबा था, दाऊद का राइट हैंड। उसने मुझसे कहा- दाऊद साहब
आपके साथ चाय पीना चाहते हैं। मुझे इसमें कुछ गलत नहीं लगा और मैंने न्यौता
स्वीकार कर लिया।
उस शाम मुझे और बिट्टू को हमारे होटल से एक चमकती हुई रोल्स रॉयस
में ले जाया गया। वहां बात कच्छी भाषा में हो रही थी मुझे समझ नहीं आ रहा था, लेकिन मेरा दोस्त समझता था। हमें सर्कल में ले जाया गया था इसलिए हमें
लोकेशन सही से समझ नहीं आई।
दाऊद ने मुलाकात के दौरान सूट पहना हुआ था। आते ही
उसने कहा कि मैं ड्रिंक नहीं करता इसलिए आपको चाय पर बुलाया। इसके बाद हमारा चाय
और बिस्किट का सेशन 4 घंटे चला।
दाऊद से मेरी कई सारी बातें हुईं, जिसमें उसकी क्रिमिनल एक्टिविटीज भी
शामिल थीं। इन पर उसे कोई पश्चाताप नहीं था। उसने मुंबई कोर्ट मर्डर का जिक्र करते
हुए कहा, 'उस शख्स को मैंने इसलिए शूट किया था, क्योंकि वह अल्लाह शब्द के खिलाफ जा रहा था। और मैं अल्ला का बंदा हूं
इसलिए मैंने उसे शूट किया।' इस रियल लाइफ मर्डर सीन को बाद
में फिल्म अर्जुन (1985) में फिल्माया गया।"
दाऊद को पसंद थी ऋषि की
फिल्म 'तवायफ'
ऋषि ने 'खुल्लम खुल्ला' में लिखा, "दाऊद को मेरी फिल्म तवायफ काफी पसंद आई थी। इसका जिक्र करते हुए उसने कहा
था, 'मुझे 'तवायफ' काफी पसंद आई, क्योंकि उसमें तुम्हारा नाम दाऊद था।'
दाऊद का कहना था कि फिल्म से मैंने उसके नाम को महान बना दिया है।
दाऊद ने कहा कि वह मेरे फादर, मेरे अंकल, दिलीप कुमार, महमूद, मुकरी
जैसे एक्टर्स को काफी पसंद करता है।
दाऊद से मिलने जाने से पहले तक मैं काफी डरा
हुआ था, लेकिन वहां जाने के बाद मैंने काफी रिलेक्स फील
किया। दाऊद से एक बार फिर मेरी मुलाकात 1989 में दुबई में
हुई। उस दौरान नीतू भी मेरे साथ थीं। हम शॉपिंग पर गए थे। शॉप में ही दाऊद से
मुलाकात हुई थी। दाऊद हमेशा मुझसे गर्मजोशी से मिला, लेकिन
पता नहीं बाद में ऐसा क्या हो गया कि उसने भारत के खिलाफ ऐसा खौफनाक कदम
उठाया।"